Thursday 6 August 2015

*****************फिजा *************************

धुंध पड़ी है आज  फिजा में महक घुली है आज हवा में
कैसा संदेशा है लायी जिसको पंछी लिए उडे गगन में
दूर गगन में बदल डोले पानी लेके अंतर्मन में
नीर झलक न जाये पलक से बैठी में इस अंतर्द्वंद में
कैसा ये एहसास सुहाना कभी दुःख है कभी ख़ुशी है मन में
तय करते है रोज़ सफ़र हम फिर भी नहीं ठिकाना जग में
खुली फिजा की साँस है अमृत कौन है विष घोल रहा है इनमे
धुंध पड़ी है आज  फिजा में महक घुली है आज हवा में

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