तुम बिन जीना जैसे तन मे रूह ना होना
बैठे चुपचाप एक टक देखना दूर वो शीतिज़ का कोना खाली शाम और जुगनुओं का रोना कहीं दिवाली की रोशीनी कहीं खाली आसमान होना मिलने चले हम तुमसे पर साथ खयाल का होना तुम बीन जीना जैसे तन मे रूह ना होना चली हवा फिर खुशबू लेई जिसे महके दिल का कोना ना उमीदी की छटा घहरायी जैसे कोई स्वपन अन्होना गुनगुन करती हवा सरसराई जैसे गुंजा स्वर कोई गहरा मन के तार वो छेड़ गया यूँ जैसे प्यार वो पहला पहला तुम बिन जीना जैसे तन मे रूह ना होना |
Wednesday 22 July 2015
****************तुम बिन**************
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