Sunday 19 March 2017

****बंधन ****

क्यों तू फंसती मोह जाल में, बंधन के इस प्रेम जाल में।
नहीं किसी को वक्त यहाँ, क्यों करना उम्मीद जहां में।।
तो दे बंधन छोड दे नाते, पर फैला उड दूर गगन में।
खुशियाँ, प्यार हो जहाँ पे, ले चल मन उस स्वप्न धरा में।।
कोई नहीं हो जहां ये कहता, घुट ले तू अपने ही मन में।
घूमू झूम के उछलू कूदूं, बस अपनी मतवाली धुन में।।

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