छूट कर तेरे वजूद से बनूँगी मैं भी बूंद सी।
खुद पर इतराऊ कैसे नहीं रहूंगी पहले सी।।
छलकूगीं कुछ ऎसे उठकर जैसे करती नृत्य सी।
सर उठाकर चलूं मैं खुद पर इठलाती सी।।
एहसास है ये कि कहीं तो मिलती तुझसे ही।
तुझ बिन नहीं वजूद है मेरा बस तुझमें ही मिलती सी।।
खुद पर इतराऊ कैसे नहीं रहूंगी पहले सी।।
छलकूगीं कुछ ऎसे उठकर जैसे करती नृत्य सी।
सर उठाकर चलूं मैं खुद पर इठलाती सी।।
एहसास है ये कि कहीं तो मिलती तुझसे ही।
तुझ बिन नहीं वजूद है मेरा बस तुझमें ही मिलती सी।।
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